काम के समान व्याधि नहीं है, मोह-अज्ञान के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है ।
सुदुर्बलं नावजानाति कञ्चित् युक्तो रिपुं सेवते बुद्धिपूर्वम् । न विग्रहं रोचयते बलस्थैः काले च यो विक्रमते स धीरः ॥
जो किसी कमजोर का अपमान नहीं करता, हमेशा सावधान रहकर बुद्धि-विवेक द्वारा शत्रुओं से निपटता है, बलवानों के साथ जबरन नहीं भिड़ता तथा उचित समय पर शौर्य दिखाता है, वही सच्चा वीर है ।
अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च। पराक्रमश्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च ॥
बुद्धि, उच्च कुल, इंद्रियों पर काबू, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, कम बोलना, यथाशक्ति दान देना तथा कृतज्ञता - ये आठ गुण मनुष्य की ख्याति बढ़ाते हैं ।
बीती बात पर दुःख नहीं करना चाहिए । भविष्य के विषय में भी नहीं सोचना चाहिए । बुद्धिमान लोग वर्तमान समय के अनुसार ही चलते हैै ।
जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम्। मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः॥
जो मनुष्य अपने जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं करता, ऐसा धर्महीन मनुष्य ज़िंदा रहते हुए भी मरे के समान है । जो मनुष्य अपने जीवन में लोगों की भलाई करता है और धर्म संचय कर के मर जाता है, वे मृत्यु के बाद भी यश से लम्बे समय तक जीवित रहता है ।